
प्रथम चरण (1885 से 1905 ईसवी)
- नरमपंथी राजनीति या उदारवादी राजनीति का प्रभुत्व
- इस चरण में कांग्रेस पर उदारवादी नेताओं का प्रभुत्व रहा
- उदारवादी नेताओं के विचार की राजनीति को क्रांतिकारियों ने राजनीतिक भिक्षावृत्ति कहा था
इन नेताओं में दादाभाई नरोजी, उमेश चंद्र बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, मदन मोहन मालवीय फिरोजशाह मेहता, महादेव गोविंद रानाडे इत्यादि शामिल थे
- इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना 1885 ईसवी में बॉम्बे में ए ओ ह्यूम द्वारा किया गया था
- इसमें 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था
- इस दौरान भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डफरिन थे
- इसका पहला अधिवेशन मुंबई में 28 दिसंबर 1885 ईस्वी में W. C. Banerjee की अध्यक्षता में किया गया था
- दूसरा अधिवेशन कोलकाता में दिसंबर 1886 ईस्वी में दादाभाई नरोजी की अध्यक्षता में किया गया
- तीसरा अधिवेशन मद्रास में दिसंबर 1887 ईस्वी में बदरुद्दीन तैयब जी की अध्यक्षता में किया गया
- चौथा अधिवेशन मद्रास में दिसंबर 1887 ईस्वी में George Yule की अध्यक्षता में किया गया
1887 से 1891 ईस्वी
- दादाभाई नरोजी ने इंग्लैंड में भारत सुधार समिति की स्थापना कि
- समिति का उद्देश्य अंग्रेज नीति का विरोध करना था
1892 ईस्वी
- दादाभाई नरोजी ने इंग्लैंड के फिनसवरी नामक स्थान से चुनाव लड़ा
- दादाभाई नरोजी इंग्लैंड की संसद में पहुंचने वाले पहले भारतीय बने
उदारवादी नेता व्यवस्था को ठीक करवाने के लिए अंग्रेजों से प्रार्थना करते थे उन्हें प्रार्थना पत्र देते थे, शांति पूर्वक भारत की बिगड़ी हुई व्यवस्था को ठीक करवाने में लगे हुए थे ,गरम दल के नेताओं को यह सभी पसंद नहीं था गरम दल के नेता लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और बाल गंगाधर तिलक (लाल बाल पाल) थे
- इस दौरान बिहार बंगाल और उड़ीसा एक था
- 1804 ईस्वी में असम बंगाल से अलग हो गया
इस समय भारत के गवर्नर लॉर्ड कर्जन था उन्होंने यह तर्क दिया कि बंगाल एक बड़ा प्रांत है आधा प्रशासन को कुशलता से चलाने के लिए विभाजन जरूरी है , पर मुख्य मकसद हिंदू-मुस्लिम एकता को तोड़ना था
इसे तोड़ने के लिए डिवाइड एंड रूल की नीति लगाई जा रही थी
लेकिन वास्तविक कारण राष्ट्रवाद को कमजोर करना था अंग्रेज फूट डालो और राज करो की नीति अपना रहे थे विभाजन की बात सुनते ही बंगाल में राष्ट्रीय चेतना जागृत हो गई और लोग सवाल पूछने लगे
बंगाल विभाजन में बंगाल को विभाजित कर पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में बांटने का निर्णय था
दिसंबर 1903 तक यह बात पूरे बंगाल में फैल चुकी थी
कोई नहीं चाहता था कि बंगाल का विभाजन हो
सुरेंद्रनाथ बनर्जी, कृष्ण कुमार मित्र और पृथ्वीस चंद्र राय तीनों ने मिलकर बंगाली हित वादी कमेटी बनाई और बंगाल विभाजन का विरोध किया लेकिन कुछ भी काम नहीं आया
- 20 जुलाई 1905 को बंगाल विभाजन का निर्णय ले लिया गया
- 7 अगस्त 1905 को टाउन हॉल में एक विशाल सभा का आयोजन हुआ
- 7 अगस्त 1905 को स्वदेशी आंदोलन की घोषणा हुई
- बंटवारे का विरोध किया गया
- 16 अक्टूबर 1905 को विभाजन प्रभावी हो गया
- बंगाल के दो भाग हो गए पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल
- पूर्वी बंगाल में राजशाही और ढाका (ढाका मुख्य राजधानी बनाया गया)
- पश्चिमी बंगाल में बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल को रखा गया
- इस तरह हिंदू और मुस्लिम अलग हो गए
- 16 अक्टूबर 1905 को ही शोक दिवस मनाया गया
- इसके विरोध में रक्षाबंधन हिंदू मुस्लिम आपस में गले मिले आपस में रक्षा सूत्र बांधा गया
- अमार सोनार बांग्ला , रविंद्र नाथ टैगोर के द्वारा लिखा गया था जिसे बाद में बंगाल का राष्ट्रीय गान घोषित किया गया
तिलक ने आंदोलन का प्रचार मुंबई और पुणे में किया अजीत सिंह और लाला लाजपत राय पंजाब में प्रचार किया बंगाल विभाजन के समय भारत का वायसराय लॉर्ड कर्जन था
 
 
